क्या हाथ की लकीरों में लिखा ही तकदीर होती है? क्या तकदीर इन्सान पहले से ही लिखवा कर लाता है?
जिंदगी भगवान का दिया हुआ एक अनमोल उपहार है या दूसरे शब्दों में कहें तो हम कह सकते हैं कि भगवान ने हमें ये मनुष्य शरीर दिया यही उस का हम पर सबसे बड़ा उपकार है. मगर हम में से कई लोग अक्सर या तो भगवान से शिकायतें करते हैं या फिर हमारे हालातों से समझौता कर लेते हैं और फिर जब कोई बात आती है तो कहते हैं कि ‘मेरी यही तकदीर है..’ या फिर कहते हैं “मेरी तकदीर तो भगवान भी नहीं बदल सकता!” कुछ हद तक मान सकते हैं लोग सही हों मगर बात जब गहरी हो जाती है तो फिर सवाल यह उठते हैं कि आखिर भगवान, भाग्य या फिर अपनी तकदीर का लिखा सही मानकर लोग जो कुछ भी करते हैं या फिर जिन रास्तों पर चलते हैं आखिर वो रास्ते क्या भगवान की मर्जी से होते हैं?
इंसान की life अपनी खुद की life है. उसे अपनी मर्जी से जीना उसका हक है मगर बात जब सही या गलत करने की बात आती है फिर भगवान का इसमें क्या role या भूमिका? जब सब कुछ हम भगवान का लिखा मान बैठे तो फिर इंसान के कर्म और आस्था का क्या? भगवान ने किसी चोर, डाकू या फिर दूसरे अपराधियों से कभी नहीं कहा होगा कि तुम ये काम करो फिर भी लोग ये सब करते हैं तो भगवान का इसमें क्या दोष? क्या लगता है कि इसमें ईश्वर का दोष है?
अभी कुछ दिन पहले हिंदी की अग्रणी वेबसाइट अच्छीखबर डॉट कॉम पर एक लेख “जो लिखोगे वो होगा” पढ़ा जिसमें बहुत ही काम की बात लिखी थी. भाग्य का हमारे जीवन में बहुत स्थान होता है लेकिन कर्म की भी तो कुछ भूमिका या role होता है.
इस हिंदी लेख की जिन पंक्तियों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो थीं:
भगवान् भी ऐसा ही कुछ करेंगे …आखिर वो ऐसी नीरस दुनिया क्यों बनायेंगे , और अगर बनाते हैं तो फिर पाप -पुण्य का तो सवाल ही नहीं उठता , क्योंकि अगर मैं सिर्फ वही कर सकता हूँ जो लिखा है …तो खून करने पर भी दोष मेरा नहीं लिखने वाले का हुआ न ???
भला भगवान् हमारी गलतियों का दोष खुद क्यों लेंगे? दोस्तों, अगर आप जाने-अनजाने भाग्य में कुछ इस तरह यकीन कर बैठे हैं कि वो आपको ऊपर उठाने की बजाये नीचे गिरा रहा है तो इस believe को अपने जेहन से उखाड़ फेंकिये …आप कुछ भी कर सकते हैं …उसने हर एक इंसान को वो सारी शक्तियां दी है कि वो कुछ भी कर सके …इसलिए भाग्य को मत कोसिये …होता वो नहीं जो लिखा होता है …होता वो है जो आप लिखते हैं … इसलिए भाग्य की आड़ में कमजोर मत बनिए ….आगे बढिए और अपने कर्म से अपनी मेहनत से खुद लिख डालिए अपने भाग्य को.
बहुत जी लिए इस जिंदगी को यूँ ही..!सोचा अब क्यूँ न इस तरह जिया जाए!!
बात दूसरों को या दुनिया को सुधारने की नहीं है बात मुद्दे की है कि जब लोग गलत या पाप कर्म करते हैं तो फिर इसे भगवान या तकदीर से क्यूँ जोड़ते हैं. गलत काम का फल तो हमेशा गलत ही होता है. इंसान की मजबूरियां कुछ भी हों और मजबूरियों का दोष तो वो इंसान दे सकता है जिसके लिए उसके अलावा दूसरा कुछ चारा न हो! एक डाकू जब दूसरों को लूटता है तो पाप तो वो करता है; दूसरों की मेहनत की कमाई पर उसका क्या हक? किसी दूसरे का हक छीनना या फिर दसरे का दिल दुखाना हुआ न गलत काम! फिर इसे अपनी मज़बूरी या फिर तकदीर का दोष देने से इसके पाप से मुक्ति तो नहीं मिल सकती!! इंसान जो गलत कर्म करेगा उसका फल तो उसे मिलेगा ही.
तन्हा थी जिंदगी लम्हों की भीड़ में,सोचा कुछ भी नहीं इस तकदीर में,
पर जब आप मिले तो लगा ऐसे जैसे कुछ खास हो किस्मत की लकीर में.
Friends, हर इंसान की life में कुछ बदलाव के पल या फिर इन्हें turning points कहें आते हैं जब इंसान को अपनी जिंदगी की सोच(view) या फिर अपने रास्तों को बदलने के लिए सोचना पड़ता है.
बात यहाँ वही आती है; कोई इंसान अपनी लाइफ या तकदीर को क्यूँ बदले जबकि उसकी तकदीर वही है? Why any person can not change his life, his destiny?
बदल जाते हैं वो लोग अक्सर जिन्हें बदलना नामुमकिन होता है...!
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें तक़दीर का लिखा मंजूर नहीं होता है..!!
Friends, आखिर किसी की जिंदगी(life) को बदलने की कहने वाला कौन हो सकता है? माँ-बाप, रिश्तेदार, कोई दोस्त या फिर कोई शुभचिंतक; कोई भी हो सकता है जो हमसे किसी न किस रूप से संपर्क में हो. कोई हो सकता है जो हमारी भलाई चाहे या फिर हमें अच्छी या पुण्य कर्मों के रास्तों पर ले जाना चाहता हो. ईश्वर हर इंसान को किसी न किसी रूप में ऐसे अवसर(Opportunity) देता है कि हम चाहें तो खुद में कुछ सुधार कर सकें. कोई ईश्वरीय प्रेरणा(Motivation) हो सकती है.
किताबों कहानियों की बात न भी करें तब भी वास्तविक जिंदगी में भी आपको कई लोग ऐसे मिले होंगे जिनसे आप काफी समय बाद मिले होंगे तो उनकी जिंदगी(life) आमूल परिवर्तित(change) हो जाती है जिसकी पहले कोई उम्मीद नहीं कर सकता था. आखिर ये सब कैसे होता है? क्या हाथ की लकीरों से? हाथ की लकीरें तो पहले की बनीं थीं फिर ये सब कैसे? Life में कई चमत्कार होते हैं मनुष्य की जिंदगी में. ये सब कभी-कभी ईश्वरीय प्रेरणा से या फिर इंसान की इच्छाशक्ति से या फिर सत्संग से संभव होता है.
क्या हाथ की लकीरें ही सब कुछ हैं? अगर हाथ की लकीरों में बड़ा आदमी बनना लिखा है तो फिर मेहनत करने से क्या होगा, ये सोचना क्या सही है? भगवान ने इंसान को इच्छाशक्ति दी है, अपनी इच्छाओं को बदलने की, अपने भाग्य को बदलने की शक्ति दी है फिर अगर कोई इंसान गलत रास्तों पर जाता है तो अकेले भगवान का इसमें क्या दोष? हाथ की लकीरें तो सबके पास होतीं हैं. भगवान पर श्रद्धा, विश्वास भी बहुत से लोग करते हैं फिर कई इंसान साधारण और कई इंसान महान क्यों बन जाते हैं?
Friends, कुछ सवाल हैं जिनके जवाब शायद सबको खोजने चाहिए. क्या हमारे हर सही-गलत काम के लिए भगवान को दोष दिया जा सकता है? क्या इंसान अपनी किस्मत खुद नहीं लिखता?
क्या इंसान अपनी जिंदगी को अच्छे से नहीं जी सकता जब कि बहुत सी बातें आपके opposite हों?
Friends, कितने सारे लोग किस्मत पर भरोसा न करके अपने कर्मों से अपनी तकदीर खुद बनाते हैं.
किसी शायर ने क्या खूब लिखा है:
बहुत जी लिए इस जिंदगी को यूँ ही..!सोचा अब क्यूँ न इस तरह जिया जाए!!
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अनिल साहू
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